भारतीय अकादमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मंच पर एएलएस समुदाय  ने बताई न्यूरॉन्स की आवाज़

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नई दिल्ली : 18वें एशियन ओशियेनियन कांग्रेस ऑफ़ न्यूरोलॉजी (AOCN) एवम् भारतीय अकादमी ऑफ न्यूरोलॉजी के 29वें वार्षिक कॉन्फ्रेंस (IANCON) के अवसर पर  द एएलएस केयर एवम् सपोर्ट फाउंडेशन को दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एएलएस से जूझ रहे मरीजों और उन मरीजों की देखभाल करने वाले लोगों के आवाज बनने का मौका मिला।

“न्यूरॉन्स की आवाज़” नामक इस कार्यक्रम में ALS ka इलाज कर रहे डॉक्टरों, इस बीमारी पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों और इस समुदाय से जुड़े लोगों को एक साथ आने का मौका दिया। इस मंच के माध्यम से डॉक्टरों और रिसर्चरों के साथ साथ इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों की देखभाल करने वाले उनके परिजनों ने भी अपने अनुभवों और जरूरतों के बारे में विस्तार से बताया।

सतविंदर कौर, निर्देशक, ALS केयर एवम् सपोर्ट ग्रुप ने कहा कि, ” IANCON ने हमें मौका दिया और इस दुर्लभ बीमारी से जुड़े मरीजों की आवाज़ को हम सीधा डॉक्टरों तक पहुंचा पाए हैं, जो अभी तक हमारे लिए आसान नहीं था। इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ना सिर्फ एएलएस बल्कि दूसरे न्यूरोलॉजिकल डिसोडर्स के मरीजों को भी एक नई ऊर्जा और नई आशा मिली है। यह एक अभूतपूर्व विकास है हमारे समुदाय के लिए।”

“हमें आशा है कि भविष्य में जल्द ही एएलएस को लेकर भारत में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। इस बीमारी को दुर्लभ बीमारियों की सूची में शामिल किया जाएगा, इस बीमारी को लेकर हमारे देश में ही रिसर्च और ट्रायल्स किए जायेंगे, मरीजों के लिए थैरेपी मिल पाएंगी, नि:शुल्क जीवन रक्षक दवाओं के साथ साथ सप्लीमेंट्स और उपकरण भी मिल पाएंगे और इनके साथ ही एएलएस सपोर्ट सेंटर भी बनाए जाएंगे, ऐसी हमारी उम्मीद है।” सतविंदर कौर ने बताया

इस कार्यक्रम के दौरान एएलएस मरीजों की देखभाल कर रहे उनके परिवार ने इन मरीजों के कठिन सफ़र, रोजमर्रा में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया जो की बिल्कुल आसान नहीं है लेकिन इस दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे मरीज अपना जीवन खुशी और आत्मविश्वास के साथ जी सकें, इसके लिए वे हर रोज नई कोशिश करते हैं।

एएलएस से जुड़ी चिकित्सा और दुनिया में हो रही नई रिसर्चों के बारे में  इस कार्यक्रम में डॉ आशुतोष गुप्ता और डॉ विनीथ जयसन ने बताया। इसके साथ ही डॉ फारूक, सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट ऑफ जेनोमिक्स एवम् इंटरोगेटिव बायोलॉजी ने जेनेटिक्स का एएलएस के जांच और निदान में किस तरह  सहायता करती है इसको लेकर अपने अनुभव साझा किए।

डॉ एम. गौरी देवी, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी, सर गंगाराम अस्पताल ने इस दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे मरीजों और उनकी देखभाल कर रहे उनके परिवारजनों का अभिनंदन करते हुए बताया कि,” यूं तो अपनी इतनी वर्षों की प्रैक्टिस के दौरान बहुत से  एएलएस बीमारी से पीड़ित मरीजों से उनकी बातें सुनी हैं लेकिन ये पहली बार है कि इन मरीजों की आवाज़ दुनिया तक पहुंचाने के लिए इन्हें मंच मिला है। ये सभी मरीज और इनके केयर गिवर सच में योद्धा हैं।”

“एएलएस एक दुर्लभ बीमारी है जिसके बारे में आम जनता के साथ साथ चिकित्सा जगत में भी और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। मैं IANCON को शुभकामनाएं देती हूं जिन्होंने ये पहल की है। समय रहते ही इस बीमारी के लक्षणों को पहचानकर उसका इलाज शुरू करने से भी एएलएस के मरीज़ बेहतर जिंदगी जी सकते हैं। इस बीमारी से जुड़ी बहुत सी चुनौतियां हैं लेकिन भारतीय सरकार, रिसर्चरों और एएलएस समुदाय के लोगों को एकजुट होने पर इसके इलाज और निदान में बदलाव जरूर लाया जा सकता है।” डॉ गौरी ने कहा

एएलएस से जुड़े तथ्य:

~ प्रगतिशील न्यूरोडिजनरेटिव बीमारी, औसतन आयु की संभावना: 2- 5 साल

~ हर 90 मिनट में किसी  में एएलएस के लक्षण पाए जा रहे है या किसी का  इस बीमारी की वजह से जीवन अंत हो रहा है।

~ विश्व भर में एएलएस के कुल साड़े 4 लाख मरीज हैं, भारत में ये संख्या 70 हज़ार से 1 लाख के बीच की है

~ लक्षण: मासपेशियों का कमज़ोर होना, खाना निगलने, सांस लेने या बोलने में मुश्किल महसूस होना, संतुलन स्थिर ना होना या थकावट महसूस होना, मुंह से लार टपकना

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